नानी संग गोठ का आयोजन
शासकीय डाॅ. वामन वासुदेव पाटणकर कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय में वुमेन सेल’’ के तत्वाधान में ‘‘बदलते सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों पर चर्चा हेतु नानी संग गोठ’’कार्यक्रम का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में कार्यक्रम की संयोजक एवं संचालक डाॅ. रेशमा लाकेश ने बताया कि आज बदलता सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्य हमारी युवा पीढ़ी को अत्यधिक प्रभावित कर रहा है। आज युवाओं की मानसिकता बदल रही है। बदलते परिवेश में आज नारी पुरूषों से कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही है। आज की नारी सशंकित नहीं सशक्त हैे। इन सबके बावजूद क्यों ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती है। जब हमारा आत्मविश्वास और साहस को चुनौती मिलती है।
आज के इस आयोजन में तीन पीढ़ियों को शामिल किया गया। नानी, मम्मी और बेटी। कार्यक्रम के प्रारम्भ में महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ. सुशील चन्द्र तिवारी एवं प्राध्यापकों ने सभी अतिथियों का शाॅल एवं श्रीफल से सम्मान किया। वरिष्ठ महिलाओं में श्रीमती संजीवनी श्रीवास्तव, श्रीमती वनमाला झा, श्रीमती एस.एस सिद्दकी, श्रीमती मनोरमा चैहान एवं श्रीमती ऐडिना मैरी फर्नान्डीस ने हिस्सा लिया।
अपने विचार रखते हुए संजीवनी श्रीवास्तव ने कहा कि बेटियाँ घर की रौनक है। वे घर में उमंग और उत्साह लाती है। बेटियाँ मायके से संस्कार लाती है जो दो परिवार को जोड़ता है। हमारे समय में संयुक्त परिवार हुआ करते थे। जहाँ अनुशासन, त्याग और प्रेम रहता था। संस्कार ही परिवार की पहली पाठशाला है। हमारे समय में जीवन में इतनी भागदौड़ नहीं थी। एक अच्छा सामाजिक परिवेश था। पर आज मुझे यह देखकर चिन्ता होती है कि नई पीढ़ी किस तरफ जा रही है।
संगोष्ठी में हिस्सा लेते हुए एम.एससी की कु. शिल्पी ने कहा कि - पहले के समय की तुलना में आज लड़कियां अपने आपको ज्यादा असुरक्षित महसूस करती है ऐसा क्यों? इसका जवाब देते हुए संजीवनी श्रीवास्तव ने कहा कि आज के परिवेश में असुरक्षित परिधान और निरंकुशता के कारण हमें कई दफे परेशानियों को सामना करना पड़ता है।
महाविद्यालय की प्राध्यापक डाॅ. ऋचा ठाकुर ने कहा कि संस्कार पीढ़ी दर पीढ़ी आते है और हम लोग सारे सुधार की कवायद बेटियों के लिये करते है। अपेक्षाओं भी उन्हें से करते है पर बेटों को इन सबसे अलग रखते है।
श्रीमती एसएस सिद्दकी ने कहा कि चाहे लड़का हो या लड़की संस्कार तो परिवार से ही मिलता है। और परिवार में माँ से बेहतर कोई मार्गदर्शक नहीं होता। उन्होनें कहा कि आज की पीढ़ी कॅरियर के प्रति जागरूक है उसे अपने कॅरियर के साथ-साथ परिवार की भी जिम्मेदारी के लिये मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिये।
श्रीमती वनमाला झा ने भारत की प्रमुख हस्तियों श्रीमती इन्दिरा गांधी, मदर टेरेसा और किरण बेदी का जिक्र करते हुए कहा कि इनका संघर्ष कम नहीं था और आज इन्होनें हम सबके लिये एक आदर्श प्रस्तुत किया है।
गृहविज्ञान की छात्रा रानू टकरिया ने कहा कि - हमें दो जनरेशन को लेकर चलना है और आप सबका अनुभव हमारी पीढ़ी को आगे का मार्ग दिखायेगा।
इस अवसर पर श्रीमती मनोरमा चैहान, श्रीमती फर्नान्डीस ने भी छात्राओं को अपने अनुभव से परिचित कराया। छात्राओं की ओर से कु. हिमानी, कु. निकिता साहू, कु. यामिनी साहू, कु. रेशमा साहू ने अपने विचार रखे तथा नानियों से प्रश्न भी पूछे।
महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ. सुशील चन्द्र तिवारी ने कहा कि वुमेन सेल की यह पहल प्रसंशनीय है। जिसने तीन पीढ़ियों को चर्चा के लिये एक मंच प्रदान किया। इस चर्चा में सामाजिक परिवेश, शिक्षा और ज्ञान के साथ व्याप्त विसंगतियों को भी दूर करने के उपायों पर सारगर्भित चर्चा हुई।
संगोष्ठी में महाविद्यालय के प्राध्यापक, छात्रायें बड़ी संख्या में उपस्थित थी। अंत में आभार प्रदर्शन डाॅ. ज्योति भरणे ने किया।