वाद-संवाद
छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य का समृद्ध इतिहास है: डाॅ. कल्पना मिश्रा
शासकीय डाॅ. वा. वा. पाटणकर कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय दुर्ग के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग द्वारा वाद-संवाद श्रृंखला के अंतर्गत छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य के इतिहास पर विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया।
शासकीय दू.ब. कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय रायपुर की प्राध्यापक और साहित्यकार डाॅ. कल्पना मिश्रा मुख्य वक्ता थी।
डाॅ. मिश्रा ने छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य के इतिहास का विस्तार से विवेचन किया। उन्होनें बताया कि छत्तीसगढ़ी गद्य का प्राचीनतम रूप ‘दंतेवाड़ा के शिलालेख’ में मिलता है। श्रीराम की कथा, ढोला की कहानी और चंदैनी की कहानी से गद्य की साहित्य यात्रा शुरू हुई। पालेश्वर प्रसाद शर्मा, पं. श्यामललाल चतुर्वेदी, खूबचंद बघेल, हबीब तनवीर आदि की सशक्त परम्परा ने छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य का समुचित विकास किया। जीवनी, अनुवाद, प्रहसन, एकांकी, नाटक, संस्मरण के साथ ही छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से समृद्ध रहा है।
‘सतवंतिन सुकवारा, आंसू म फिले अचरा’ आदि कहानियों के उदाहरण के माध्यम से उन्होनें छत्तीसगढ़ी भाषा की मधुरता, वचनवक्रता एवं चुटिलेपन तथा लोक के मुहावरे में सम्पृक्तता को रेखांकित किया। इस अवसर पर एम.ए. द्वितीय एवं चतुर्थ सेमेस्टर की छात्राओं ने विभिन्न विषयों पर पाॅवर प्वाइंट प्रस्तुति दी।
प्राचार्य डाॅ. सुशील चन्द्र तिवारी ने छात्राओं को स्तरीय प्रस्तुति पर उन्हें बधाई देते हुए कहा कि खुद से स्लाईड्स तैयार कर मंच पर प्रस्तुति देने से आत्मविश्वास मिलता है जो कि भविष्य में रचनात्मक तथा शैक्षणिक गतिविधियों में बहुत काम आता है।
विभागाध्यक्ष डाॅ. यशेश्वरी धु्रव ने अतिथि व्याख्यान की महत्ता बताई और विषय का प्रतिपादन किया। श्रीमती ज्योति भरणे ने हिन्दी विभाग की सत्रीय गतिविधियों एवं उपलब्धियों पर प्रतिवदेन प्रस्तुत किया।
उल्लेखनीय अकादमिक गतिविधियों के लिये विभाग द्वारा डाॅ. अम्बरीश त्रिपाठी का सम्मान किया गया एवं सत्र 2018 में प्रथम एवं द्वितीय स्थान प्राप्त छात्राओं पूनम, वर्षा को पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. अम्बरीश त्रिपाठी ने किया।