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Photo Gallery: भाषा-संप्रेषण एवं प्रस्तुति पर व्याख्यान साधना अभ्यास से आती है - डाॅ. चन्द्र कुमार जैन

 

भाषा-संप्रेषण एवं प्रस्तुति पर व्याख्यान साधना अभ्यास से आती है - डाॅ. चन्द्र कुमार जैन


Venue : Govt DR Waman Wasudev Patankar Girls PG College
Date : 06/12/2018
 

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गल्र्स काॅलेज में भाषा-संप्रेषण एवं प्रस्तुति पर व्याख्यान 
साधना अभ्यास से आती है - डाॅ. चन्द्र कुमार जैन





शासकीय डाॅ. वा.वा. पाटणकर कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, दुर्ग के आई.क्यू.ए.सी. के अन्तर्गत प्रख्यात वक्ता और शासकीय दिग्विजय स्नातकोत्तर महाविद्यालय राजनांदगांव के हिन्दी प्राध्यापक        डाॅ. चंद्रकुमार जैन का भाषा, संप्रेषण और प्रस्तुति पर रोचक व्याख्यान आयोजित हुआ। डाॅ. जैन ने छात्राओं को बताया कि शब्द तो अपने आप में जड़े होते है उसमें चेतना का प्राण फूँकने वाला तो वक्ता होता है। शब्द केवल शोर और तमाशा नहीं है शब्द तो ब्रम्ह है। भाषा सधी हुई होनी चाहिए और सधी भाषा साधना का काम हैै। साधना अभ्यास से आती है। ‘करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।’ 
डाॅ. जैन ने कहानी के माध्यम से छात्राआंें को समझाया कि निर्भय होकर अपने आपको पहचानिए और अभिव्यक्ति का कोई भी अवसर न चूकिए। संप्रेषण की अनिवार्य शर्त अच्छा श्रोता बनना होता है। संप्रेषण में वक्ता को विषय की अवधारणा बिल्कुल स्पष्ट होनी चाहिए। विषय और परिवेश के अनुसार स्वर के अनुपात, प्रवाह, आरोह-अवरोह के साथ ही भाव-भंगिमा में परिवर्तन होना जरूरी है। अगर अच्छा बोलना कला है तो उचित अवसर पर बोलना आवश्यक न हो तो खामोश रहना उससे बड़ी कला है। जिसको मुक्तिबोध ने ‘समझदार चुप्पी’ कहा है। अपने कहे को दूसरे की जीवन का अनुभव बना देना तुलसी और कबीर जैसी क्षमता है। जिसके मूल में संप्रेषण की कला है। 
डाॅ. जैन ने सम्प्रेषण की व्यापकता में संकेत, छात्राओं द्वारा परीक्षा में लिखे उत्तर को तथा स्नेह और संवेदना के हाथ को भी शामिल किया। शक्ति, कमजोरी, अवसर और चुनौती के ये चार तत्व व्यक्ति की भाषा, संप्रेषण, कला एवं व्यक्तित्व के विकास में बड़ी भूमिका निभाते है। प्रस्तुति से ही व्यक्तित्व उभरता है। प्रस्तुति चाहे किसी भी माध्यम से क्यों न हो आकर्षक एवं सटीक होना चाहिए।
उन्होनें कहा कि शब्द, भाषा के अनुसार ही भाव-भंगिमा संकेत प्रस्तुति को मुकम्मल बनाती है। डाॅ. जैन ने अपने कविता संग्रह से कुछ पंक्तियों को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया। 
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्राचार्य डाॅ. सुशील चन्द्र तिवारी ने छात्राओं को व्यक्तित्व विकास की जीवन में अहमियत समझायी। सरकारी या प्राईवेट नौकरी या जीवन संघर्ष में भाषा और सम्प्रेषण व्यक्ति के सबसे सशक्त और भरोसेमंद हथियार होते है। महाविद्यालय का काम शिक्षा के साथ ही ऐसे कार्यशालाओं के माध्यम से छात्राओं के व्यक्तित्व को विशिष्ट बनाना भी है। 
आई.क्यू.ए.सी. की प्रभारी डाॅ. अमिता सहगल ने आज के आयोजन की सार्थकता पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. ऋचा ठाकुर ने किया। इस अवसर पर डाॅ. अनिल जैन, डाॅ. के.एल. राठी,       डाॅ. मीरा गुप्ता, डाॅ. अल्का दुग्गल, डाॅ. मीनाक्षी अग्रवाल, डाॅ. शशि कश्यप, डाॅ. रेशमा लाकेश, डाॅ. यशेश्वरी धु्रव, डाॅ. ज्योति भरणे तथा छात्रायें बड़ी संख्या में उपस्थित थी। कार्यक्रम के अंत में महाविद्यालय परिवार की ओर से डाॅ. जैन का शाल एवं श्रीफल से सम्मान किया गया। छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध रचनाकार स्व. लक्ष्मण मस्तूरिया को भावांजली अर्पित की गई। डाॅ. जैन ने ‘मोर संग चलव रे गीत’ प्रस्तुत किया।

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