शासकीय डाॅ. वा.वा. पाटणकर कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय दुर्ग एवं रजा फाउण्डेशन नई दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित ‘‘आरंभ’’ श्रृंख्ला की तृतीय कड़ी के रूप में नई दिल्ली के युवा कलाकार श्री आकश द्विवेदी की कथक नृत्य प्रस्तुति रखी गई। महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ. सुशील चन्द्र तिवारी ने कहा कि इस तरह के आयोजन से छात्राओं को अलग-अलग विधाओं की जानकारी मिलती है एवं वे भी ऐसी मेहनत के लिए प्रेरित होती है।
महाविद्यालय के नृत्य विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. ऋचा ठाकुर ने बताया कि नृत्य मानवीय अभिव्यक्तियों का रसमय प्रदर्शन है। भारतीय धर्म और संस्कृति आरंभ से ही मुख्यतः नृत्यकला से जुड़े हुये है। आमंत्रित कलाकार का स्वागत डाॅ. सुचित्रा खोब्रागढ़े एवं डाॅ. मिलिन्द अमृतफले ने किया। आकश द्विवेदी ने कथक नृत्य में विशारद एवं एम.ए. स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की है। इसके अतिरिक्त नैचुरोपैथी, योग, चित्रकला, पखावज में भी महारत हासिल की है। प्रख्यात गुरू श्री जयकिशन महाराज जी से कथक की विधिवत शिक्षा ग्रहण की है। इसके साथ ही समय-समय पर विदुषी शाश्वती सेन, कुमुदिनी लाखिया जी से भी कथक की बारीकियाँ सीखी है।
अपनी प्रस्तुति का आरंभ आकाश ने गुरूवंदना से करते हुये कहा कि किसी भी कार्य का शुभारंभ ईशवंदना से हो तो वह निश्चित सफल होता है उन्होनें विभाग की छात्राओं यामिनी, करीना, क्षमा, जामिनी, गोमती के माध्यम से कथक के आरंभिक पक्ष को प्रायोगिक तौर पर समझाया जिसमें मूलतः सीधीपीठ खड़े होना, हाथ की स्थिति एवं मुद्रा का प्रयोग बताया। उध्र्वहस्तचक्र, मध्यहस्तचक्र एवं तलहस्त चक्र हस्तक बताया। कथक के नृत्त एवं नृत्य पक्ष के अंतरगत, तालसंयम की प्रस्तुति में धमार, त्रिताल का लक्षण बताते हुए निकासगत एवं घूंघटगत का बेहद खूबसूरत प्रदर्शन किया। जो कि पं. जयकिशन महाराज जी की रचना थी।
कार्यक्रम के अंत में बिंदादीन महाराज द्वारा रचित एवं पं. बिरजू महाराज जी द्वारा बनाई गई रचना भजन के रूप में प्रस्तुत की जिसमें अहिल्या उद्धार एवं गोवर्धन पूजा का कथानक था। उन्होनें नवरस के अनुसार मुख-भाव प्रदर्शन की रोचक प्रस्तुति की। छात्राओं ने बड़े उत्साह के साथ उनसे अपनी जिज्ञासा शांत की। इस अवसर बड़ी संख्या में छात्रायें एवं प्राध्यापक उपस्थित थे।